Monday, 16 February 2015

मनुष्य जन्म में ही मुक्ति की सम्भावना क्यों है ? : Why are there chances of salvation in human birth ?

मनुष्य जन्म में ही मुक्ति की सम्भावना क्यों है ?

सबसे ज्यादा परमात्मा की चेतनता मनुष्य में प्रकट हुई है ,चेतनता तो पत्थर में ,पेड़ पोधो में भी है पर बहूत थोड़ी प्रकट है। पशु-पक्षियों में चेतनता पत्थर और पेड़ पोधो से ज्यादा प्रकट है पर मनुष्य से कम प्रकट है इसलिए मनुष्य की सम्भावना भी सबसे अधिक है परमात्मा होने की , 'नर' से 'नारायण' होने की।
मनुष्य को मनुष्य इसीलिए कहा है क्योंकि ये मनवाला है। मनुष्य सोच विचार कर सकता है, अपनी बुध्धि का उपयोग कर सकता है , अच्छे बुरे की पहचान कर सकता है। मनुष्य का मन सबसे ज्यादा विकसित है इस पृथ्वी पर और जिसका मन जितना विकसित होता है उसकी उतनी ही सम्भावना होती है मन के पार जाने की। इसलिए मनुष्य रूपी बीज में परमात्मा रूपी वृक्ष छिपा है। जब तक मन के पार नहीं जाया जाता तब तक परमात्मा रूपी फूल नहीं खिल सकता है यही अस्तित्व का नियम है।

पशु-पक्षियों का मन इतना विकसित नहीं है ,वो ज्यादा सोच विचार नहीं कर सकते है,उनकी बुध्धि सिमित है। पशु पक्षी प्रकृति के अनुसार जीते है,उसकी सारी वृतियाएं स्वाभाविक रूप से चलती है जैसे की खाना, पीना, सोना, उठना, बच्चे पैदा करना। पशु पक्षी उतना दुःख नहीं भोगते जितना मनुष्य भोगता है क्योंकि पशु पक्षियों के मन में उतने विचार नहीं आते है जितने मनुष्य के मन में आते रहते है और विचार ही ,इच्छाए ही दुःख का कारण है और निर्विचार होना ही परम आनंद है,परम शांति है,परम सुख है ,समाधी है।~~#महाशून्य

 Why are there chances of Salvation in Human Birth ?

"The most consciousness of divine is manifested in humans ,but in stones and plants-trees it is very less.It is more in birds and animals then in stones and plants-trees but less than humans that is why there is most potentiality of humans to be divine itself, from 'Men' to 'Naarayan'.
Humans are called humans because they have 'Mind'.Humans can think and utilize their intelligent to identify the goods and bads .The human minds are most developed on this earth and those whose mind is developed most there have more potentiality to be transcendent the mind.That is why there is always a seed hidden in the human being which can be transformed into divine .And unless mind is not transcendent then the flower of divine can not be blossomed and it is the law of the existence.

The minds of animals and birds are not so developed,they can not think much and their intelligence is restricted.Birds and animals live according to the nature,and their vratiya naturally runs such as fooding,drinking,sleeping,waking up,giving birth to a child.They do not have much sorrow as humans are because they do not think so much as humans think and thoughts and desires are the main cause of misery and thoughtlessness is ultimate Bliss,Peace,Pleasure and Samadhi."~~#Mahashunya

No comments:

Post a Comment