कर्मो से मुक्ति : केवल आत्मज्ञानी ही मुक्त होता है।
"कर्मो को तीन प्रकार से विभाजित किया जा सकता है :
1.संचित कर्म 2.प्रारब्ध कर्म और 3.क्रियामान कर्म।
1.संचित कर्म:तुम्हारे सारे के सारे अच्छे या बुरे कर्म जो इस जन्म में या पूर्व के जन्मों मे किए हुए है लेकिन अभी तक जिनको भोग नही पाए हो।संचित कर्म का फल या तो तुम इस जन्म मे भोगोगे या अगले जन्मो मे भी भोग सकते हो,या कुछ इस जन्म में और कुछ अगले जन्मो मे,सभी आपके कर्मो और प्रकृति के विधान के अनुसार होता है जो बहोत ही गहन है और उसे कोई भी नही बदल सकता है।
केवल ज्ञान की अग्नि से ही ये सारे के सारे संचित कर्म एक क्षण मे भस्म हो जाते है।
(भगवदगीता-4-37 ,4-17)
'जबही नाम हृदय धरियो भयो पाप को नाश।
जैसे चिंगी आग की पड़ी पुरानी घास॥'-कबीर
2.प्रारब्ध कर्म:ये वो कर्म है जो तुम्हे केवल एस जन्म में एस शरीर के द्वारा भोगना शेष है,ये जब तक के लिए है जब तक आपका शरीर जीवित है,प्रारब्ध कर्म ज्ञानी को भी भोगना ही पड़ता है।
3.क्रियामान कर्म :ये वो कर्म है जो तुम अपने आने वाले समय में करोगे,जो आगे जाकर संचित और प्रारब्ध कर्म बन जाएगे।
क्रियामान कर्म से भी छुटकारा केवल ज्ञान से ही होता है,ज्ञानी का अहंकार चला जाता है,वो 'कर्ता' नही रह जाता है,और जो 'कर्ता' नही रह जाता है वो अब 'भोक्ता' भी नही रह जाता है इसलिए अब आगे जितने भी कर्म होगे वो अकर्ता भाव से होगे और उसका कोई भी बंधन नही होगा।
आत्मज्ञानी इन सारे ही कर्मो के बंधन से मुक्त होता है:-
1.संचित कर्म ज्ञान की अग्नि से भस्म हो जाते है।
2.प्रारब्ध कर्म: ज्ञानी को भी जब तक भी ये शरीर जीवित रहता है तब तक उसे वो भोगना ही पड़ता है और वो खुशी खुशी भोग लेता है.
3.क्रियामान कर्म:अकर्ता के भाव से उसको अब आने वाले सारे ही कर्मो का बंधन नही रह जाता है
इस तरह से ज्ञानी सभी प्रकार के बंधन से छूट जाता है।"~~#महाशून्य
Freedom from all (Karma) : Only enlightened one is free from all the Deeds.
“Deeds can be divided in to three
types:
1.Accumulated Deeds 2.Prarabdh Deeds and 3.Kriyaman Deeds.
1.Accumulated Deeds: All good or
bad deeds you did in this or any other past lives and the result of those are
still pending which you may enjoy ,suffer in this life on in future lives. And
the results of all the deeds are governed as par the law of the universe and
which cannot be changed by anybody.
All the results of the accumulated
deeds can only be burnt in a moment by the fire of self-realization.(Refer Srimadbhagvadgeeta-4-37 and 4-17).
"Jabhi Naam Hruday Dhariyo Bhayo
Pap ko nash,
Jaise Chingi aga ki padi purani
Gaas.”- Kabir
2.Prarabdh Deeds: The results of
these deeds will be suffered by this body in this birth till the body is alive.
Even an enlightened one has to suffer from all these deeds.
3.Kriyaman Deeds: All the deeds
which you are going to perform in future from this moment onwards will become later on as Accumulated
and Prarabdh Deeds.
Anybody can get rid of all the
Kriyaman deeds by self –realization only.Because there is no ego so in all
future deeds there will be no sence of ‘Doer’ and hence there will be no
bondage or ‘Suffering’.
An enlightened one is free from all
these deeds:
1.All the Accumulated Deeds are
being burnt in a moment by the fire of self-realization.
2.All the balance Prarabdh Deeds:
Even an enlightened one has to suffer from all these deeds in the balance life
of this birth and he will suffer with happiness.
3. There is no bondage of all the Kriyaman Deeds because
of the sence of “un-doer’.
This way an enlightened one is free
from all the bondage of all sorts of the deeds.”~~#Mahashunya
No comments:
Post a Comment