मन की पकड़ :
आप उतने ही बँधे हो जितनी आपके मन की पकड़ है मनुष्यों के प्रति,जीव-जन्तु,पेड़-पोधे, पदार्थ,शास्त्रो के प्रति,गुरु के प्रति,अपने अपने धर्मो,सिद्धांतो,मान्यताओ ,अंधविश्वाशो के प्रति।
जितना तुम अपने अंतर्विवेक से,अपने स्वयं के ज्ञान से इनको जितना जान लेते हो इनसे उतने मुक्त हो जातो हो उतने ही आनंद,शांति को उपलब्ध हो जाते हो।
जिसकी जितनी पकड़ है वो उतना ही बँधा हुआ है,जो सौ प्रतिशत पकड़े हुआ है वो सौ प्रतिशत बँधा है,जिसने सौ प्रतिशत पकड़ छोड़ दी है वह सौ प्रतिशत जीते जी मुक्त ही है।
और ये पकड़ आपकी अपनी ही है और इससे छुटकारा भी आपको ही करना है गुरु तो केवल सहायक होगा आपको आपकी पकड़ छुड़वाने में "~~#महाशून्य
Clinging's of the Mind :
"God's play,the whole game is depend on the clinging's of the mind,
You are equally bound as your mind clings towards Human-being,
Creatures,Plants and trees,Substances,Scriptures,Masters,your own so called
Religions,Doctrines,Belief system,Superstitions.
You are equally free and enjoy peace and blissfulness as much you got to
know all these clinging's from your inner core ,your own knowledge.
You are bound in the same proportion of your clinging's of the mind,if
you have hundred percent clinging's you are hundred percent bound and who has
no clinging's at all is totally live free.
And these clinging's are your own and you just have to get rid of it
yourself ,the Master will only help you to get rid of it by yourself."~~#Mahashunya
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