*वास्तविक विजयादशमी*
विजयादशमी का अर्थ है अपने भीतर की पाँचोंं इन्द्रियों पर और पाँचों विकारो पर विजय।
पांच इन्द्रिय है ,आँख,नाक, कान, जिव्हा और त्वचा। और
पांच प्रमुख विकार है काम, क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार।
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यहाँ पर सम्यक का अर्थ है इन्द्रियों के प्रति अनासक्त भाव।
और पाँचों विकारो से मुक्ति का अर्थ है भीतर एक होश ,एक प्रज्ञा का जन्म जो किसी भी विकार को उठने नहीं देती है। विकार उठने के पहले ही होश उसे उठने नहीं देते है।
इन सब पर विजय प्राप्त होगी जब आपके भीतर आत्मज्ञान उतरता है और वो ज्ञान उतरेगा आपके राम के प्रति समर्पण से ।
जिसने भी इन रावण के 10 सिर रूपी इन दसो पर विजय प्राप्त कर ली उसी ने वास्तविक विजयादशमी मनाई।
और इन विकारो पर विजय जब प्राप्त होगी जब राम रूपी भगवत्ता का ज्ञान रूपी बाण आपकी अहंकार रूपी रावण की नाभि पर पड़ेगा। रावण को अपनी नाभि के भीतर अमरत्व का घमंड था और वो घमंड तो टूटता ही है चाहे वो रावण का ही क्यों न हो।
और इन विकारो पर विजय जब प्राप्त होगी जब राम रूपी भगवत्ता का ज्ञान रूपी बाण आपकी अहंकार रूपी रावण की नाभि पर पड़ेगा। रावण को अपनी नाभि के भीतर अमरत्व का घमंड था और वो घमंड तो टूटता ही है चाहे वो रावण का ही क्यों न हो।
जब राम यानि परमात्मा या सद्गुरु का शब्द रूपी बाण अहंकारी के ह्रदय में प्रवेश करता है तो वो प्रेम के गोले के साथ सारा का सारा भ्रम दूर कर देता है।
*सद्गुरु ऐसा सुरमा करे शब्द की चोट।*
*मारे गोला प्रेम का हरे भ्रम को कोट।।*
*मारे गोला प्रेम का हरे भ्रम को कोट।।*
इसी शुभकामना के साथ की आप भी जल्दी ही अपने भीतर के इन विकारो पर विजय प्राप्त करेगे ।
आप सभी प्रेमियों को विजयादशमी की बहोत बहोत शुभकामनाये।"-महाशून्य
आप सभी प्रेमियों को विजयादशमी की बहोत बहोत शुभकामनाये।"-महाशून्य
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