परम अज्ञानी होना ही परम ज्ञान को उपलब्ध होना है :
*भगवान तुम्हारे दर पर खड़ा है और दरवाजा खटखटा रहा है लेकिन तुम हो की अपने भीतर के विचारों के शोरगुल की वजह से सुन नहीं पाते है और दरवाजा नहीं खोलते है।
*ईश्वर तुम्हे प्रतिक्षण दर्शन दे रहा है लेकिन तुमने अपनी आँखों पर पर्दा डाल रखा है वेदों का ,गीता का,कुरान का,बाईबल का।
*वाहे गुरु तुम्हे प्रतिपल स्पर्श कर रहा है लेकिन तुम हो की अपने मीठे सपनो में खोये हो की तुम्हें होश ही नहीं है।
*परमात्मा रसमय है और प्रतिक्षण तुम्हे आनंद का स्वाद दे रहा है,पर तुम भूत के चिंतन और भविष्य की चिंता में मगन हो।
*अल्लाह हरपल अपनी खुशबू भिखेर रहा है लेकिन तुम गहरी नींद में सोये हो।
तुमने अपने तथाकथित ज्ञान के बौझ से अपनी प्रज्ञा को दबा रखा है।
इसीलिए परम अज्ञानी हो जाओ ताकि परमात्मा के परम एश्वर्य को अनुभूत कर सको।"~~महाशून्य
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