Wednesday 10 February 2016

Love to Self : स्वयं से प्रेम :

स्वयं से प्रेम : 

प्रेम कि शुरुआत सबसे पहले स्वयं से ही होती है । स्वयं से प्रेम का अर्थ है अपने को जैसे है वैसा का वैसा पूर्ण रूप से स्वीकार करना, अपने से कोई भी शिकायत नहीं करना, अगर आप स्वयं को प्रेम नहीं कर सकते है तो दुसरो से प्रेम करने कि सम्भावना भी कम हो जाती है । जो प्रथम अपने आप से प्रेम करने लगता है, वही प्रेम धीरे-धीरे दुसरो पर भी फैलता है और एक क्षण ऐसा आता है कि यही प्रेम समष्टि में फ़ैल जाता है, पुरे ब्रह्माण्ड को अपने भीतर आविष्ट कर लेता है या ऐसा कहे कि अपने वास्तविक स्वभाव में स्थित हो जाता है जो कि पहले से ही प्रेम-स्वरुप है ।

प्रेम एक घटना है जो हर व्यक्ति के जीवन में कभी भी, कही भी घट सकती है । प्रेम कभी किया नहीं जाता है बल्कि हो जाता है । प्रेम में जिया जाता है, अनुभूत किया जाता है लेकिन प्रेम के बारे में कहना बहुत मुश्किल है और अगर कहने का प्रयास किया कि वह क्षुद्र हो जाता है ।

अगर आप किसी एक व्यक्ति से बेशर्त प्रेम करते है तो वह परमात्मा के मंदिर में पहला कदम होगा और जब अनेक व्यक्तियों को बेशर्त प्रेम कर पाते है तो आप मंदिर में प्रवेश कर जाते है और जब पुरे ब्रह्माण्ड में ये प्रेम फ़ैल जाता है तो आप स्वयं ही परमात्मा हो जाते है उसी मंदिर के ।"~~महाशुन्य

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