Wednesday 10 February 2016

Love and Contract : प्रेम और सौदा

प्रेम और सौदा

प्रेम में कोई मांग नहीं होती है, केवल देना ही देना है क्योंकि कोई आशा नहीं है, कोई शर्त नहीं है । अगर व्यक्ति को कुछ न कुछ चाहिए तभी वह प्रेम करेगा और अगर मांग पूरी नहीं हुई हो वो प्रेम ख़त्म । असल में इसे प्रेम कहना भी ‘प्रेम’ जैसे पवित्र शब्द को कलंकित करना हैं । इसे मैं सौदा या व्यापार कहता हूँ, सारी कमियों, दोषों के बावजूद प्रेम करना ही वास्तविक प्रेम है ।
जो परमात्मा को प्रेम करते है वे उनसे कुछ भी नहीं मांगते है और जो मांगते है वो परमात्मा से प्रेम नहीं करते है । जो परमात्मा से धन, पद, प्रतिष्ठा, आरोग्य, नौकरी, मकान, स्त्री, संताने इत्यादि कि मांग करते है उन्हें परमात्मा से कोई लेना देना नहीं है उन्हें तो केवल अपने स्वार्थ से मतलब है, वे परमात्मा को भी अपना नौकर समझते है और उनको रिश्वत देने से भी बाज नहीं आते है, यह लोभ है, प्रेम नहीं.
प्रेम तो स्वतंत्रता देता है, बांधता नहीं, मुक्त करता है, जो प्रेम तुम्हे गुलाम बनाये, या आप पर अपनी मालकियत करे, या किसी शर्त पर आधारित है तो समझ लेना वो प्रेम नहीं है सौदा है ।

तू मुझे छोड़कर ठुकराकर भी जा सकती है,
तेरे हाथों में मेरे हाथ है , जंजीरे नहीं ।

राबिया एक सूफी फ़क़ीर हुई उसने एक दिन कुरान में पढ़ा कि शैतान से नफरत करो उसे वो पंक्ति ठीक नहीं मालूम पड़ी तो उसने उसे काट दी कुछ देर बाद उसका भाई हसन वहां आया और उसने देखा कि किसी ने कुरान कि एक लाइन काट राखी है तो हसन ने पूछा राबिया से ये कुफ्र किसने किया ?
राबिया ने कहा ‘ मैंने किया है क्योंकि इसमें जो लिखा था वो मुझे ठीक नहीं लगा क्योंकि मैं शैतान से नफरत नहीं कर सकती हूँ, मैं तो सभी से प्रेम करती हूँ, क्योंकि प्रेम मेरा स्वभाव है, मैं चाहूँ तो भी किसी से नफरत नहीं कर सकती हूँ, मैं विवश हूँ प्रेम करने को ।

आप सभी के भीतर प्रेम का खजाना छिपा है केवल उसे उघाड़ना भर हैं, जैसे मूर्तिकार पत्थर के भीतर छिपी मूर्ति को केवल उसके ऊपर जो व्यर्थ पत्थर है उसे अलग करके मूर्ति को अनावृत करता है, उघाड़ता है, आविष्कृत करता है ।"~~महाशुन्य

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