आत्मिक मिलन :
दो शरीरों का मिलन असंभव है
चाहे कितना ही पास आ जाये क्योंकि वहा केवल काम है ,प्रेम नहीं । लेकिन जहाँ दो मन
मिलते है वहा भी प्रेम कि केवल शुरुआत हो पाती है क्योंकि मन भी पुरे कभी नहीं मिल
पाते है, सबके अपने अपने सोचने का ढंग है, विचार है, इच्छाये है, कामनायें है, अपने
अपने जीने का ढंग है, परन्तु जब दो आत्मायें मिलती है तब प्रेम का कमल खिलता है, तब
प्रेम अपनी पूर्णता को प्रेमा-भक्ति को उपलब्ध होता है, प्रेम कि पराकाष्टा को
उपलब्ध होता है ।
“पोथी
पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ॥“
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ॥“
कबीर कहते
है जिसने प्रेम को वास्तविक रूप में अनुभव कर लिया, जी लिया, जो प्रेम में एक हो
गया वही वास्तविक पंडित है । वह पंडित नहीं है जिसने शास्त्रों को रट लिया और
प्रेम कि व्याख्या शब्दों से कर रहा है लेकिन कभी प्रेम कि अनुभूति से नहीं गुजरा
।
“ प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छबि कहा
समाये ”
परमात्मा के प्रेम को परमात्मा होकर ही जाना जा सकता है, व्यक्ति होकर नहीं, यह
कभी नहीं हुआ है, न ही हो रहा है और न ही कभी हो सकता है क्योंकि जब तक भी अहंकार
है, जब तक भी ‘मैं’ का भाव है तभी तक परमात्मा का प्राकट्य नहीं है ।
मैं इस संसारी प्यार कि बात नहीं कर रहा हूँ जिसे तुम कहते हो कि ‘I Love You ‘ ,यह तो किसी न किसी
शर्त पर निर्भर होता है, जब तक शर्त कि पूर्ति हो रही है तब तक प्यार होता है और
जिस क्षण भी शर्त कि पूर्ति नहीं हुई तो प्रेम तिरोहित हो जाता है, ऐसा प्रेम पल
में बनता है और पल में मिटता है, यह तो नश्वर है । इसीलिए दुनिया में इतने तलाक हो
रहे है और प्रेम विवाह भी ज्यादा सफल नहीं हो पा रहे है क्योंकि प्रेम के पीछे कोई
न कोई शर्त छिपी है ।
सुकरात कि पत्नी सुकरात को बहुत परेशान करती थी, गालिया देती थी, फटकारती और
एक दिन तो गरम चाय ही उसके मुहं पर डाल दी । लेकिन सुकरात ने उसे कभी तलाक नहीं
दिया, उससे दूर नहीं गये क्योंकि वे उससे वास्तविक प्रेम करते थे, वे पत्नी से
क्या पुरे ब्रह्मांड से प्रेम करते थे । ऐसा व्यक्ति विवश होता है प्रेम करने को ।"~~महाशुन्य
No comments:
Post a Comment