जीते जी मरना :
"जिसका अहंकार नष्ट हो गया वो जीते जी मर गया और मरना सदा
अहंकार का ही होता है जो किसी भी वस्तु का नाम नही है ,परन्तु केवल एक भ्रम है,एक ख्याल है,एक विचार मात्र है । जिसका
ये भ्रम दूर हो गया है वो ही वास्तविक मे मरा है और फिर उसी का दूसरा जन्म होता है
,वही
ब्राह्मण है,जो
द्विज हो गया ,ब्राह्मण
के घर मे सिर्फ़ पैदा होने से कोई ब्राह्मण नही होता है।
कबीर ने कहा है -
"मरू मरू सब जग कहे मरण न जाना कोई।
एक बार ऐसे मरो की फिर मरना ना होई ॥“
"जिस मरने से जग डरे मेरे मन आनन्द।
कब मरू कब पायहुँ पुरण परमानन्द॥“
“माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर ।
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये दास कबीर ॥“~~महाशून्य
Die Alive :
"One can die alive only when
his ego had destroyed and only ego dies ,
ego is not the name of any object
,but an illusion ,an idea, a thought only.One whose this illusion had gone had
really died and taken a new birth and is now a Brahman which is twice-born
called Dvij, just born in the home of Brahman is not a Brahman."~~Mahashunya
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