Monday, 30 March 2015

जीते जी मरना : Die Alive :

जीते जी मरना :

"जिसका अहंकार नष्ट हो गया वो जीते जी मर गया और मरना सदा अहंकार का ही होता है जो किसी भी वस्तु का नाम नही है ,परन्तु केवल एक भ्रम है,एक ख्याल है,एक विचार मात्र है । जिसका ये भ्रम दूर हो गया है वो ही वास्तविक मे मरा है और फिर उसी का दूसरा जन्म होता है ,वही ब्राह्मण है,जो द्विज हो गया ,ब्राह्मण के घर मे सिर्फ़ पैदा होने से कोई ब्राह्मण नही होता है।
कबीर ने कहा है -
"मरू मरू सब जग कहे मरण न जाना कोई।
एक बार ऐसे मरो की फिर मरना ना होई ॥

"जिस मरने से जग डरे मेरे मन आनन्द।
कब मरू कब पायहुँ पुरण परमानन्द॥

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर ।
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये दास कबीर ॥~~महाशून्य


Die Alive :


"One can die alive only when his ego had destroyed and only ego dies ,
ego is not the name of any object ,but an illusion ,an idea, a thought only.One whose this illusion had gone had really died and taken a new birth and is now a Brahman which is twice-born called Dvij, just born in the home of Brahman is not a Brahman."~~Mahashunya

मनुष्य की स्वतंत्रता : Human's Freedom:

मनुष्य की स्वतंत्रता :


"मनुष्य स्वतन्त्र है अपना स्वर्ग या नर्क निर्मित करने में,चाहे तो दुःखी रहे या चाहे तो इसी क्षण सुखी हो जाए,चाहे तो जन्मों जन्मों संसार-चक्र में रहे या चाहे तो इसी क्षण मुक्त हो जाए।
अगर परमात्मा ने इतनी भी स्वतंत्रता नही दी होती की आप अपने दुख और सुख दोनो के निर्माता हो तो ऐसी स्वतन्त्रता का कोई भी मूल्य नही है जिसमे केवल सुखी होने या केवल दुखी होने के लिए मनुष्य बँधा हो।


जिस भी व्यक्ति ने यह स्वीकार कर लिया की में स्वयं ही अपने सारे के सारे दुःख-सुख और सभी  परिस्थितियो का ज़िम्मेदार हूँ ,ऐसा व्यक्ति संसार मे कभी भी दुःखी नही रह सकता है क्योंकि जो भी वह कर रहा है अपनी स्वतन्त्रता से कर रहा है और परिणाम के लिए खुद ही ज़िम्मेदार है किसी दूसरे पर ये ज़िम्मेदारी नही थोपता है "~~महाशून्य

Human's Freedom:

"Human is free to build a heaven or hell, either be sad or happy this moment or may live in the world-cycle in so many lives or may get liberation in this moment.
If God had not given you so much freedom to be the creator of both their joys and sorrows ,such freedom has no value in which human is either bound to be happy always or sad only.

Any person who has accepted that he is only responsible for all joys-sadness and all the situations of life,such a person can never be in misery because he takes the full responsibilities of all his acts done independently and not imposing it to anybody else."~~Mahashunya

Thursday, 5 March 2015

महाशून्य का सत्संग : " परमात्मा पाया ही हुआ है " : A Discourse of Mahashunya on : " God is already Found "

महाशून्य का सत्संग : "परमात्मा पाया ही हुआ है " : A Discourse of Mahashunya on : "God is already Found" :



पाना और खोना : Gain and Loss :

पाना और खोना :

जो दिया जा सकता है,वहीं छीना भी जा सकता है,
जिसे दिया ना जा सके,उसे छीना भी नहीं जा सकता है,
जो छीना नहीं जा सकता है,उसे पाया भी नही जा सकता है,
जिसे पाया जा सके,उसे खोया भी जा सकता है,
जो केवल पहले से ही पाया हुआ है,केवल वही पाया जाता है,
जो केवल पहले से ही छीना हुआ है,केवल वही छीना जा सकता है"~~महाशून्य

Gain and Loss :

"That can be given,it can be taken way,
That cannot be given,it cannot be taken away,
Which cannot be taken away,it also cannot be found,
That can be found,it may also be lost,
Which is already found,only that is found,

Which is already captured,can only be taken away.”~~Mahashunya

Wednesday, 4 March 2015

महाशून्य का सत्संग : "परमात्मा की लीला " : A Discourse of Mahashunya on : "God's Play"

महाशून्य का सत्संग : "परमात्मा की लीला " : A Discourse of Mahashunya on : "God's Play" :



आत्मा का स्वभाव : The Nature of Spirit

आत्मा का स्वभाव :

"आत्मा अगर ज्ञानस्वरूप है तो उसमे अज्ञान में उतरने की भी संभावना निहित है,
आत्मा अगर शांतस्वरूप है तो उसके अशांति में होने की भी संभावना  छिपी है,
आत्मा अगर सत्य स्वरूप है तो उसके असत्य में होने की भी संभावना छिपी है,
यानी जिसमे जो क्षमता है उसमे ही उसके विपरीत क्षमता विघमान है।"~~महाशून्य

The Nature of Spirit :

"If the nature of spirit is knowledge then there is possibility to be in ignorance,
If the nature of spirit is peaceful then there is possibility to be in turmoil,
If the nature of spirit is real then there is possibility to be in unreal,
means there is possibility of having opposite of the potential ability also."~~Mahashunya 

Tuesday, 3 March 2015

महाशून्य का सत्संग : " शास्त्रो की उत्पत्ति कैसे ? " : A Discourse of Mahashunya on : " How Scriptures are Originated ?"

महाशून्य का सत्संग : " शास्त्रो की उत्पत्ति कैसे ? " : A Discourse of Mahashunya on : " How Scriptures are Originated ? " :

सारे ही शास्त्र और ज्ञान आत्मा से ही प्रकट हुए है,
All the Scriptures are appeared from the spirit.


आत्मा ज्ञानस्वरूप है : The nature of spirit is knowledge

आत्मा ज्ञानस्वरूप है :

"आत्मा ज्ञानस्वरूप हैसारे ही शास्त्र और ज्ञान आत्मा से ही प्रकट हुए है,
जिसे भी आत्म ज्ञान हुआ है ,आत्मा उसके शरीर को माध्यम बनाकर शास्त्र प्रकट करती है
शास्त्रो के शब्द पकड़ना नही है,उन्हे अपने अनुभव से समझना है और अपने अनुभव के बाद ये जानना है कि तुम्हारा जो अनुभव है वो सही है ,फिर शास्त्र केवल तुम्हारे ज्ञान का मिलान करने के लिए होते  है "~~महाशून्य

The Nature of Spirit is Knowledge :

 “The nature of spirit is knowledge, all the scriptures are appeared from the spirit,
Whoever is self-realized the spirit makes the medium of his body to reveal scripture.
You need not to hold the words of the scriptures but to know after experience that your experience is correct and then scriptures are only to match your knowledge.”~~Mahashunya

Monday, 2 March 2015

महाशून्य का सत्संग : " ध्यान क्या है ?" : A Discourse of Mahashunya on : " What is Meditation ? "

महाशून्य का सत्संग : " ध्यान क्या है ?" : A Discourse of Mahashunya on : " What is Meditation ? " :

ध्यान कुछ भी करना नही हैध्यान है कुछ भी नही करना और भीतर सिर्फ़ जागरण रह जाये :

Meditation is not to do anything, meditation is doing Nothing and only Awareness left.


ध्यान क्या है ? What is Meditation?

ध्यान क्या है ?

"ध्यान एक अक्रिया है,कुछ भी ना करना ही ध्यान है,ध्यान मे एक मात्र बाधा है तुम्हारी जन्मो की कुछ ना कुछ करते रहने की आदत भले ही जप करते रहेशास्त्रो का अध्ययन करते रहे,सत्संग करते रहे लेकिन जब तक भीतर से मौन ना होगेशांत नही होगे ,जन्मों की आदत नही छोड़ोगे कुछ करने की और भीतर निर्विचार अवस्था को उपलब्ध नही होगे तब तक ध्यान मे प्रवेश संभव नही है।

ध्यान कुछ भी करना नही है,ध्यान है कुछ भी नही करना और भीतर सिर्फ़ जागरण रह जाये"~~महाशून्य


What is Meditation? 


"Meditation is an in-act,doing nothing ,there is only one obstacle on the path of meditation is your Habits of so many lives of doing something like chanting,study of Scriptures listening Satsang ,but unless you be silence,be calm,not get rid of the habits of so many lives and do not reach to the state of thoughtlessness within there will be no entry in meditation.


Meditation is not to do anything, meditation is doing Nothing and only Awareness left."~~Mahashunya 

Sunday, 1 March 2015

महाशून्य का सत्संग : "गृहस्थ में सन्यास " : A Discourse of Mahashunya on : "Sannyas in household "

महाशून्य का सत्संग : "गृहस्थ में सन्यास " : 

A Discourse of Mahashunya on : "Sannyas in household " :


सीखा हुआ ज्ञान और अनसिखा ज्ञान : Learned Knowledge and Unlearned Knowledge :

सीखा हुआ ज्ञान और अनसिखा ज्ञान :


"यहा पर संसार मे जो भी पढ़ा,लिखा,सीखा ,याद किया जाता है या जानकारी एकत्रित की जाती है वो सब की सब बाहर की है,नश्वर है, मिटने वाली है ,जगत की है जो अनित्य है,मन तक ही सीमित है।
परंतु जो भी अनसीखी है,ना ही पढ़ी हुई,ना ही लिखी हुए,ना ही सीखी हुई,ना ही याद की हुई,ना ही जानकारी एकत्रित की हुई है वो सब की सब आपके भीतर की है,आपकी स्वयं के स्वरूप की है,आपकी आत्मा की है,शाश्वत है,कभी मिटती नही और नित्य है ,मान के पार है।
धर्म का ज्ञान,आत्मा का ज्ञान कभी सीखा नही जाता वो तो सिर्फ़ उगाड़ा जाता है ,अज्ञान का भ्रमरूपी परदा हटाना भर है"~~महाशून्य


Learned Knowledge and Unlearned Knowledge :

"Here in the world whatever is being read, written, learned, memorized or all of the information is collected out are all  mortal, is annihilated, the universe who is perishing, is limited to the mind only.
But whatever  neither read nor write, while neither learned nor memorized, nor is the information collected are within you , of your own nature ,of  your soul ,is eternal, never fade, and are beyond mind.

Knowledge of Religion, Self realization is never learnt but is just to remove the curtain of illusions of ignorance."~~Mahashunya

महाशून्य का सत्संग : " विवाह की सार्थकता " : A Discourse of Mahashunya on : " Significance of Marriage "

महाशून्य का सत्संग : " विवाह की सार्थकता " : 

A Discourse of Mahashunya on : " Significance of Marriage " :