गुरु तो रंगरेज :
कबीर ने कहा है " गुरु तो रंगरेज है "
वो शिष्य को अपने ही रंग से रंग देता है मतलब वो शिष्य को भी गुरु ही बना देता है ।कबीर फिर कहते है :
"पारस और संत मे एक ही अन्तर जान,
पारस लोहे को सोना करे,संत कर दे आप समान ॥ “
मीरा कहती है :
"श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।
ऐसी रंग दे, के रंग नहीं छुटे ,
धोभिया धोये चाहे सारी उमरिया,
लाल ना रंगाऊं मैं, हरी ना रंगाऊ,
अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया,
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया, श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।
बिना रंगाये मैं तो घर नाही जाउंगी,
बीत ही जाए चाहे सारी उमरिया॥ “
"बैठी संतो के संग, रंगी मोहन के रंग, मीरा प्रेमी-प्रीतम को मनाने लगी।"~~महाशून्य
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