परमात्मा को समर्पित :
"मैनें कभी कुछ बोला नही है ; तुम ही मुझसे अमृत वचन बरसा रहे हो।
मेरा अपना कोई रूप नही है ; तुम ही मुझमें अपना रूप दिखला रहे हो।
मेरा अपना कोई रंग नही है ; तुम ही मुझमें अपना रंग चढ़ा रहे हो।
मेरा अपना कोई गीत नही है ; तुम ही भैरव,भैरवी,रागिनी होकर मुझमे अलोकिक गीत गा रहे हो।
मेरा अपना कोई संगीत नही है ; तुम ही अनहद की धुन मेरे भीतर गूंजा रहे हो।
ये सुर ,ये ताल ,ये सरगम,ये शांति,ये मस्ती भरा नाच,ये आनंद की वर्षा ;
इसमें कुछ भी तो मेरा नहीं है,तुम्ही मुझमें अपना ऐश्वर्य दिखला रहे हो "~~महाशून्य
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