“अपने जीवन में पूरा खिले :
वो
ऋतु ही क्या जो बसंत की बहार न ला पाये,
वो
मनुष्य ही क्या जो परमात्मा न हो पाये,
वो
स्त्री ही क्या जो संतान को जन्म न दे सके,
वो
नर ही क्या जो नारायण न हो सके,
वो
भक्त ही क्या जो भगवान न हो सके,
वो
साधना ही क्या जो साध्य तक न ले जा सके,
वो
शिष्य ही क्या जो गुरु न बन सके,
वो
गुरु ही क्या जो सत्य का ज्ञान न दे सके,
वो
नाम ही क्या जिसमे ॐ का गुंजन न हो,
वो
दिल ही क्या जिसने कभी प्रेम न किया हो,
वो
पैर ही क्या जो सत्संग में न ले जाते हो,
वो
कान ही क्या जो सत्संग न सुनते हो,
वो
आंख ही क्या जो आश्चर्य से न भरी हो,
वो
हाथ ही क्या जो परोपकार में न लगे हो,
वो
वाणी कि क्या जिससे अमृत न बरसता हो,
वो
मन ही क्या जो कभी शांत न होता हो,
वो
सुख ही क्या जो कभी खो जाता हो,
वो
दुःख ही क्या जो प्रभु कि याद न दिलाता हो।
जब तक आपका व्यक्तित्व पूरा नहीं खिलता जहाँ तक सम्भावना है तब तक वो शांति, वो आनंद, वो माधुर्य नहीं मिलेगा जिसके की आप हकदार है ।“~~महाशून्य