मनुष्य के दुःख का मुख्य कारण :
"मनुष्य के दुःख का,संताप का,बैचेनी का,परेशानी का मुख्य कारण है उसका अपने स्वरूप का विस्मरण होना है,उसके द्वारा किए गये वो सारे के सारे कर्म जो उसको अपने स्वरूप से दूर ले जाते है दुःख का कारण बनते है क्योंकि अपने स्वभाव से दूर जाने की कोशिश मनुष्य को दुःखी करती है,उसे खिलने नही देती जिसे होने को वो यहा आया है।
आत्मज्ञानी ने अपने स्वरूप का स्मरण कर लिया है ,उसका फूल पूर्ण खिल गया है जिसके लिए वो पैदा हुआ था इसलिए ज्ञानी को दुःख,संताप,बैचेनी और परेशानी नही होती,वो सभी दुःख सुख मे हर वक्त सम रहता है,वही स्थित-प्रज्ञ होता है।
इसलिए मनुष्य के दुःख दूर करने का उपाय है अपने स्वरूप का स्मरण भर कर लेना और इसके लिए कोई विशेष साधना की ज़रूरत नही है,केवल जो हम ख़यालो मे,विचारो से,अपने अहंकार के वशीभूत अपने को अपने असली स्वरूप के अतिरिक्त कुछ भी ओर मान लिया है उसे फिर से स्मरण कर जान ले तो जीवन मे फिर कभी दुःखी नही हो सकते,सदा ही आनंद मे,शांति मे रहते है और जन्म-मरण से छुटकारा भी पा लेते है।"~~महाशून्य
The Main Cause of Human Suffering :
"The main cause of human suffering,anguish,agony is
the forgetfulness of his real nature and whatever deeds they do which take him
away from the nature leads the misery and responsible for the suffering which
prevents to blossoms for which he was born.
Self-realized one had remember his true nature and his
flower blossoms for which he was born and hence he is free from all
suffering,anguish,agony,misery and he may be called as 'Sthith-pragya'.
The only way to eliminate
human misery is the remembrance of his true nature and not need any special efforts,only to
remember what has been forgotten by our ego,thoughts,imaginations the real
nature so that there will always be peace and blissfulness and there will be no
further birth."~~Mahashunya