धनतेरस और तनतेरस
"क्या आप जानते हैं,आज धनतेरस है परंतु क्या आप जानते हैं कि आज तनतेरस भी है।
आज जहाँ एक तरफ माँ धनलक्ष्मी का पूजन हम धनकामना हेतु करते हैं।
वहीं दूजी तरफ आज स्वास्थ्य, आरोग्य,आयुर्वेद, शरीर चिकित्सा के देवता भगवन धन्वंतरि की जयंती भी है।
तन,मन की स्वस्थता हेतु क्या हम भगवान धन्वंतरि जी का पूजन उसी उत्साह ,उसी विश्वास के साथ करते हैं या करते ही नहीं हैं जिस भाँति धन कामना हेतु माँ धनलक्ष्मी का या कुबेर का।
धन अर्जन के मोंह में तन और मन के स्वास्थ्य का विसर्जन तो हम नहीं कर रहे?
आज जहाँ एक तरफ माँ धनलक्ष्मी का पूजन हम धनकामना हेतु करते हैं।
वहीं दूजी तरफ आज स्वास्थ्य, आरोग्य,आयुर्वेद, शरीर चिकित्सा के देवता भगवन धन्वंतरि की जयंती भी है।
तन,मन की स्वस्थता हेतु क्या हम भगवान धन्वंतरि जी का पूजन उसी उत्साह ,उसी विश्वास के साथ करते हैं या करते ही नहीं हैं जिस भाँति धन कामना हेतु माँ धनलक्ष्मी का या कुबेर का।
धन अर्जन के मोंह में तन और मन के स्वास्थ्य का विसर्जन तो हम नहीं कर रहे?
*सावधान*
जबकि हम सब जानते हैं कि स्वास्थ्य ही प्रथम धन है हम सबके परम हितकारी हमारे पुरखे भी कहते थे और हमारे बड़े बुजुर्ग भी यही कहते हैं।
जबकि हम सब जानते हैं कि स्वास्थ्य ही प्रथम धन है हम सबके परम हितकारी हमारे पुरखे भी कहते थे और हमारे बड़े बुजुर्ग भी यही कहते हैं।
"प्रथमम सुखम निरोगी काया,
द्वितीयम सुखम गृहे वस माया।"
द्वितीयम सुखम गृहे वस माया।"
स्पष्ट है कि प्रथम सुख जब निरोगी शरीर का होना है ,सत्य ही है जब शरीर स्वस्थ नहीं होता तो धन ,यश सब व्यर्थ लगता है फिर भी हम धन के लिए लारटपकू बन जाते हैं।
मैं यह नहीं कहता कि आप धन की अभिलाषा न करें या धनलक्ष्मी कुबेर की पूजा न करें अपितु मेरे कहने का संदर्भ मात्र यही है कि हम माँ धनलक्ष्मी के साथ साथ स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि का पूजन भी प्राथमिकता के साथ करना न भूलें।
जैसे भिन्न भिन्न कर्मों के द्वारा हम महालक्ष्मी का पूजन करके खूब धन अर्जित करने का संकल्प लेते हैं।
उसी प्रकार योग ,संयम कर व नशा मुक्ति का संकल्प करके हम भगवान धन्वंतरि जी का पूजन उत्सव सद्भाव पूर्वक मनावें।
धन के चक्कर में तन को न ठुकराएँ।
धनतेरस व तनतेरस समभाव से मनाएँ।
बल्कि मैं तो कहूंगा कि तनतेरस और अधिक पूर्ण भावना से मनावें।
क्यों कि
धन बिन तन किस काम का,
तन बिन धन नहि होय।
धन बिन तन रहि जात है,,
तन बिन रहे न कोय।।
उसी प्रकार योग ,संयम कर व नशा मुक्ति का संकल्प करके हम भगवान धन्वंतरि जी का पूजन उत्सव सद्भाव पूर्वक मनावें।
धन के चक्कर में तन को न ठुकराएँ।
धनतेरस व तनतेरस समभाव से मनाएँ।
बल्कि मैं तो कहूंगा कि तनतेरस और अधिक पूर्ण भावना से मनावें।
क्यों कि
धन बिन तन किस काम का,
तन बिन धन नहि होय।
धन बिन तन रहि जात है,,
तन बिन रहे न कोय।।
मैं नहीं चाहता कि आप सब मेरे परम प्रिय मेरे स्वजनों को किसी प्रकार की क्षति हो या आपको किसी भी तरह का अपूर्ण लाभ मिले।
मेरी इच्छा मात्र इतनी है कि आप सम्पूर्ण हों।
मेरी इच्छा मात्र इतनी है कि आप सम्पूर्ण हों।
आप तन से स्वस्थ हों व धन से मस्त हों।"